नई चुनौतियों के लिये रहना होगा तैयार

लॉकडाउन में आमजन की अर्थव्यवस्था डगमगाई


मेरठ। कोरोना ने जहां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की चूलें हिला दी है, वहीं 14 दिन के लॉकडाउन में भारत सहित ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था भी हिल गई है। इसके बीच राहत की बात बस इतनी है कि महानगरों से जहां 30 फीसदी तक लोग अपने गांवों को लौट गये हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता अधिक होने से वहां कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिखता।हालांकि इसके परिणाम आगे के छह माह बाद दिखाई देंगे, जब पूरे देश में आर्थिक उलट-पलट के बीच महंगाई आसमान छू सकती है क्योंकि उस समय वस्तुओं की मांग अधिक होगी और आपूर्ति की चेन बनने में समय लगेगा। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण एक ओर जहां पूरी दुनिया के अर्थ जगत में हाहाकार मचा हुआ है, वहीं भारत ने समय रहते 21 दिनों का लॉकडाउन का फैसला लिया तो इसकी अर्थव्यवस्था भी पटरी से उतरने के कगार पर पहुंच गई। वैसे बाजार हमेशा अपने पास तीन माह से लेकर छह माह का स्टॉक रखता है। इसलिये ही लॉकडाउन के 14 दिन बाद भी बाजार में थोड़ी बहुत समस्या को छोड़कर आपूर्ति में कमी को लेकर कोई बड़ी समस्या नहीं आ रही। वैसे भी बड़े शहरों से मजदूर तबका से लेकर दूसरे राज्यों के लोग वापस लौट गये हैं। इससे एक फायदा यह हुआ कि बड़े शहरों पर 30 फीसदी तक बोझ कम हुआ है। इससे वहीं की व्यवस्था करने में आसानी हो रही है। वहीं जो लोग जैसे-तैसे गांव पहुंच गये हैं, तो वहां उन्हें भोजन की समस्या नहीं होगी। 


गांव बना जीने का आधार वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था से हम सभी वाकिफ हैं कि वह कृषि पर निर्भर है और उसकी सबसे बड़ी विशेषता लॉकडाउन में सामने आ रही है कि घरों में बैठे लोगों को जो भोजन मिल पा रहा है, वह गांव के कारण ही। अनाज की कीमत का अहसास आज बखूबी पता चल रहा है।लॉकडाउन में लोगों ने सबसे अधिक आटा, दाल, चावल व अन्य राशन जमा किया क्योंकि यह सभी को पता था कि घर से बाहर नहीं निकलने की स्थिति में भोजन ही वह आधार है जिसके सहारे हम सभी जीवित रह सकते हैं। गांव में विलासिता के सामान भले ही न मिले, लेकिन वहां भोजन की कमी नहीं होगी। मौजूदा समय में गांव में अनाज की कोई कमी नहीं है। गत अक्टूबर- नवम्बर में चावल की फसल ठीक हो गई थी, तो अभी खेतों में गेहूं की फसल लगी हुई है। अभी तिलहन, सरसो, अलसी आदि की फसल घरों आ गई है।दलहन में मसूर, अरहड़, चना के फसल भी कट गये हैं। हालांकि मार्च के अंत में बारिश और ओलावृष्टि से फसलें खराब हुई थीं, लेकिन फिर भी उत्पादन हो गया है। देश में छह माह का बफर स्टॉक भी है। यदि लॉकडाउन आगे बढ़ता भी है तो भी देश में खाने की समस्या नहीं होगी।


निजी सेक्टर के कर्मचारी संशय में 


एक जो बड़ी समस्या आएगी और जिसे लेकर निजी सेक्टर के लोग चिंतित भी हैं कि यदि लॉकडाउन आगे बढ़ता है तो अप्रैल महीने के वेतन का क्या होगा? चूंकि देश में 90 फीसदी से अधिक लोग निजी सेक्टर कार्यरत हैं, इसलिये उनकी चिंता जायज है। उन्हें नहीं पता कि बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था में आगे उनका घर कैसे चलेगा? फिर उत्पादन प्रभावित होगा। मौजूदा समय बाजार के पास तीन से छह माह बफर स्टॉक हो सकता है, लेकिन यदि उत्पादन शुरू नहीं हुआ तो आगे तीसरे माह से छठे माह के बीच आपूर्ति कम होने महंगाई आसमान छू सकती हैहालांकि शहर के अधिकांश लोगों तीन माह का राशन अपने घरों में रख लिया है, इसलिये भोजन की समस्या नहीं होगी।बच्चों की पढ़ाई, फीस, नये कक्षा में प्रवेश, नया कोर्स लेना आदि कई समस्याएं खड़ी होंगी, जिसके समाधान में समस्या आएगी।वैसे देश के प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन के दौरान किसी भी कर्मचारी का वेतन नहीं काटने का निर्देश दिया है, लेकिन इसे कैसे लागू किया जाएगा, वेतन मिलेगा या कटेगा, इसको लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया हैऐसे में यदि लॉकडाउन आगे खिंचता तो स्पष्ट गाइड लाइन सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।कुल मिलाकर हम सभी को अर्थव्यवस्था को लेकर नई चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार रहना चाहिये। इसमें आज हम सभी चैन की सांस ले पा रहे हैं और भोजन की किसी प्रकार समस्या नहीं आ रही तो वह है भारत के किसानों के कारण। ऐसे में देश के जवानों, डॉक्टर-नर्स, पुलिस और सफाई कर्मचारियों के साथ किसानों के लिये सैल्यूट तो बनता ही है।


जय किसान।