उत्तराखंड सरकार के संवेदनहीन रवैये से पलायन

नजीबाबाद। नोवल कोरोना वायरस कोविड-19 को लेकर देश के प्रधानमंत्री की ओर से देश भर में जारी किए 21 दिनों के लाकडाउन के दौरान उत्तराखंड सरकार के संवेदनहीन रवैय्ये ने वहां की फैक्ट्रियों व प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया।


देश भर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की ओर से 21 दिनों यानि 14 अप्रैल तक के लिए लाकडाउन जारी कर दिए जाने के बाद उत्तराखंड की विभिन्न फैक्ट्रियों व प्रतिष्ठानों में काम करने वाले मजदूरों के सामने एकाएक रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ। विभिन्न स्थानों पर काम करने वाले लोगों को मार्च माह में किए गए उनके काम का भुगतान अप्रैल माह में होना था। नोवल कोरोना वायरस कोविङ-19 को लेकर देश भर में केन्द्र सरकार की ओर से जारी किया 21 दिनो का लाकडाउन मार्च माह के अंतिम सप्ताह में शुरु किया गया। यही वह बड़ा कारण था कि इस दौरान मजदूरी पेशा करने वाले लोगों की जेबें खाली थी। ऐसे में भूखों मरने की नौबत आते देख उन लोगों ने भूखे-प्यासे रहते हुए पैदल यात्रा शुरु अपने घरों को पहुंचने का निर्णय ले लिया। 


लाकडाउन के शुरुआती चार दिनों में उत्तराखंड से सीमा पार कर उत्तर प्रदेश में पहुंचे लोगों के यहां पहुंचने पर उनकी मदद करते हुए खाना, पानी, फल, बिस्कुट व गंतव्यों तक पहुंचने करे लिए वाहनों की व्यवस्था करने को मानवता के नाते उत्तर प्रदेश के लोग आ खड़े हुए।साथ ही बिजनौर प्रशासन व पुलिस ने भी उन लोगों की भरपूर मदद की। स्थानीय प्रशासन ने उत्तराखंड से भूखे-प्यासे पैदल यात्रा कर यहां पहुंचे लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए रोडवेज की बसों व खाली लौट रहे ट्रकों से उनको गंतव्यों तक पहुंचाने की व्यवस्था की। हालांकि ऐसे दौर में उत्तराखंडसंवेदनहीनता की सभी हदें पार करते हुए अपने यहां रह रहे अन्य प्रदेशों के लोगों की मदद को कोई हाथ नहीं बढ़ाया। साथ ही उत्तराखंड सरकार ने 24 मार्च की दोपहर से ही उत्तराखंड में सिर्फ उत्तराखंड के लोगों को उनकी आईडी दिखाने पर प्रवेश दिया और अन्य लोगों और वाहनों को उत्तराखंड की सीमाओं से वापस लौटा दिया। लोगों का कहना है कि यदि उत्तराखंड सरकार उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के लिए गए वाहनों को भी उत्तराखंड में प्रवेश कराकर गंतव्यों तक पहुंचा देती तो शायद इतनी बड़ी संख्या में बच्चों, महिलाओं, वृद्धों तथा मजदूरों आदि को भूखे-प्यासे रहकर पैदल यात्रा करने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता। उत्तराखंडसे पलायन कर भूखे-प्यासे पैदल यात्रा कर लौटे लोगों को शायद अपने घरों पर ही पहुंचने की चाहत थी।


इसका उदाहरण इसी से मिलता है कि तहसील नजीबाबाद के कस्बा सहानपुर की नगर पंचायत के पूर्व चेयरपर्सन खुर्शीद मंसूरी ने उत्तराखण्ड से लौट रहे कामगारों को भोजन के पैकेट बांटे और लाकडाउन का पालन करने के लिए वहीं पर ठहरने को कहा। उनके लिए ठहरने की व्यवस्था भी करा दी लेकिन वे सभी लोग मौका पाकर वहां से भाग निकले। बताया गया कि वे सभी लोग बरेली व शाहजहांपुर के मूल रूप से रहने वाले थे और लाकडाउन की घोषणा होते ही उन्हें उत्तराखंड में स्थित फैक्ट्रियों से निकाल दिया गया था।